गुरुवार, 25 जून 2015

ढूंढ़ती है निगाहें तुम्हे (ग़ज़ल)

ढूंढ़ती है निगाहें तुम्हे,तू छुपा है जाने कहाँ।
आ लौट आ हमसफ़र,तू रुका है जाने कहाँ।

न तड़पा दिल को बनके पिया परदेसी तू,
आ गई सावन बरखा, तू रुका है जाने कहाँ।

तेरे दरस को प्यासी है, जाने कबसे मेरी नैना,
पिया बसंती बुला रही, तू रुका है जाने कहाँ।

मधुबन में आई हुँ, बनके राधा – रानी मै,
आ जा प्रेम बरसाने,तू रुका है जाने कहाँ।

क़ुर्बा है जोबन मेरी, तेरे लिए उम्र – भर,
आ बाबुल घर मुझे लेने,तू रुका है जाने कहाँ।

तनहा ज़िंदगानी कैसे जीयू, तू भी लिख खत,
दे जवाब मेरी सवालो के, तू रुका है जाने कहाँ।

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