मंगलवार, 30 जून 2015

जी चाहता सब दान कर दूँ

नजर दान कर दूँ
जिगर दान कर दूँ
ह्रिदय फेफङा किडनी
सब अंग दान कर दूँ ,

दान करने में मेरा कुछ
जाता नहीं
उल्टा नाम प्रशन्सा पाता यही
अंगो का देख भाल का जीमा
चिकित्सालय उठाता
फिर यह पुण्य कार्य मुझे क्यों नहीं भाता,

मन सोचता मस्तिस्क तर्क करता
आज का हलात देख
अपने आप पर दंश भरता,

नजर देदोगे नजरियां कैसे दोगे
पाता नहीं इन से वह क्या-क्या देखेगा
उल्टी-सुल्टी दृश्यों से इसे सेकेगा ,

जिगर दे दोगे वो जान कैसे दोगे
अच्छे-बुरे का पहचान कैसे दोगे ,

तुम्हारा ह्रिदय दूसरे के शरीर धड़केगा
कही यह धड़कन किसी का धड़कन तो नहीं रोकेगा ,

तुम्हारी फेफङो से वह साँस लेगा
इन्ही सांसो से किसी और का साँस तो न रोकेगा ,

इन सब तर्को से
मै झल्ला जाता और अपने आप से कहता
“कुछ के चलते सभी को दोशी क्यों ठहराए
लोगो के चकर में अपनी मनुषता (मानवता)
क्यों भूल जाए”।

नजर दान कर दूँ
जिगर दान कर दूँ
ह्रिदय फेफङा किडनी
सब अंग दान कर दूँ ,

जीवन में संचय नरेन्द्र
ज्ञान धन परिश्रम
दान कर दूँ।

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