रविवार, 28 जून 2015

हाये ए औरत

हाये ए औरत
उठे तो शिखर को जाए
गिरे तो गर्त में पहुचाए
अच्छे-अच्छो को धूल चटाए
इसके आगे कोई टिक न पाए
हाये ए औरत।

कार्य सिद्धि के लिए ए नीति अपनाए
इस की नीति कोई समझ न पाए
गिरते को ए दे सहारा
यह है बहती सरीता का किनारा
सभी लोग इसके तट पर आते
अपनी भूख-प्यास मिटाते
फिर क्यों है यह बेसहारा
हाये ए औरत।

ए अपनी जीवन अपनों पर की अर्पण
इसकी हर अवस्था दूसरे को है समर्पण
इसके योग्यदान से चले घर-संसार
बिना इसके सब बेकार
फिर क्यों है यह लचार
हये ए औरत।

इसके बिना सब शून्य
सुंदरता सदभावना शूरता वीरता
दृढ़ता सभी गुण है इसके अंदर
सृष्ट्री चलाने का यह है जंतर (जंत्र)
इसके बिना काम न आएगा कोई मंतर (मन्त्र)
फिर क्यों यह फसी हुई है बिच समंदर
हये ए औरत।

मर्द के कामयाबी के पिछे है इसका हाथ
सभी कामो में देती साथ
फिर क्यों यह चाहती किसी का सहारा
बहुत से लोग इससे करते किनारा
तुझे अपने आप पर क्यों नहीं विश्वास
तू अपनी शक्ति पहचान
कर जगत कल्याण
हये ए औरत।

औरत तु अब जाग
ना कर किसी का आश
सारा शक्ती हैं तेरे पास
न कर तू किसी से स्पर्धा
अपनी गुण का तु कर विकाश
नरेन्द्र तुम से करता है ए आश
हये ए औरत।

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