देख लिया पिय-तन पर,ज्यूँ पर-नारी-केश
  डाह जरी भौंहन हँसी,क्यूँ न होय जिय-क्लेश
  पिया रैन बिताई सौतन संग,प्रिया-प्रेम बिसराय
  ऐसो दर्द जगायो हिय में,डाह सों जिय जर जाय
  सोचत देख हिय-प्यारी को,हँसे पिय ओ गुलनार!
  इत आ,हिय तरसा,सौत नहीं प्रिया कोय
  केश तिहांरा,पिय तिहांरा,रैन तिहांरी होय
  सुन पिय बतरसिया,प्रिया-गात हुए कचनार
  नैन मिले ज्यूँ पिय से,हिय-पिया गई समाय |
(सन्ध्या गोलछा)
Read Complete Poem/Kavya Here डाह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें