शनिवार, 20 जून 2015

डाह

देख लिया पिय-तन पर,ज्यूँ पर-नारी-केश
डाह जरी भौंहन हँसी,क्यूँ न होय जिय-क्लेश
पिया रैन बिताई सौतन संग,प्रिया-प्रेम बिसराय
ऐसो दर्द जगायो हिय में,डाह सों जिय जर जाय
सोचत देख हिय-प्यारी को,हँसे पिय ओ गुलनार!
इत आ,हिय तरसा,सौत नहीं प्रिया कोय
केश तिहांरा,पिय तिहांरा,रैन तिहांरी होय
सुन पिय बतरसिया,प्रिया-गात हुए कचनार
नैन मिले ज्यूँ पिय से,हिय-पिया गई समाय |

(सन्ध्या गोलछा)

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here डाह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें