मै निकला उस कश्ती पर हो सवार
  नसीब में जिसके कोई किनारा नहीं !! 
लड़ता जाऊँगा वक़्त की लहरो से
  झुकना अब मुझे भी गंवारा नही !! 
करले अब चाहे जितने सितम ऐ वक़्त,
  तेरी अकड़ के आगे मुझे झुकजाना नही !! 
माना के तू बहुत महान इस दुनिया में,
  तुझ से मानू हार मेरे लिए आसान नही !!   
आजमा ले तूफ़ान ऐ जिंदगी ताकत अपनी
  अब डर कैसा “धर्म” जब कोई सहारा नही !!
डी. के. निवातियाँ ___@@@
  
- Read Complete Poem/Kavya Here झुकना अब मुझे भी गंवारा नही !! ... (ग़ज़ल)
 

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