शनिवार, 20 जून 2015

मुझे भी चाहिए अपना एक आसमान

नीले आसमान में उड़ता पंछी,
नीले समंदर के बारे में क्या सोचता होगा,
शायद ऊपर भी आसमान और नीचे भी,
ये सोचता होगा|

उसको फिर भी क्यूं पड़ी होती है आसमान नापने की,
अपने आतुर परों को फड़फड़ाने की,
उड़ जाने की,
शायद कहीं नहीं आशियाँ बनाने की,
बस उड़ने की, उड़ते जाने की।

आखिर क्यूँ नहीं मैं भी भूल पाता सब कुछ,
क्यूँ नहीं हूँ रह पाता अलग दुनिया से,
क्यूँ पड़ी है मुझे घर बसाने की,
चाहने की, चाहे जाने की,

मुझे भी चाहिए अपना एक आसमान,
मुझे भी अपना एक आसमान चाहिए।

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