सोमवार, 29 जून 2015

तरसता बूढा बाप ! !

    1. उम्र भर जिस बेटे के दरस को
      तरसता रहा बूढा बाप !
      उसके मरने के बाद तर्पण करने
      दानवीर बना आज लाल !!

      नजरे गड़ाकर बैठा रहता था चौबारे में
      जिसके इन्तजार में बूढा बाप !
      उसकी अस्थियो की पूजा करता देखा
      वो बदनसीब नौजवान !!

      ढाँपे रक्खा बदन को मात्र एक चादर से
      ताउम्र फटेहाल रहा बूढा बाप !
      बेटे ने उसकी याद में आयोजन कराया
      तस्वीर पर चढ़े चंदन माल !!

      जीवन भर पड़ा रहा अनाथ आश्रम में
      जो बिखर बूढा बाप !
      आज बेटे ने हवेली में अपनी लगायी
      स्वर्ण जड़ित चित्र लाजबाब !!

      दो जून की रोटी को घर के सुकून में
      तरसता रहा बूढा बाप !
      बेटे ने मोहल्ले में उसके नामपर आज
      लगाया लंगर बे हिसाब !!

      भटकती आत्मा से बिलखता देखता है
      आज भो वो बूढा बाप !
      जीवन में सब कुछ मिले तुझको
      एक मांगे मिले हजार !!

      दिल से निकलता उसके, देता आशीष
      आज भी रोता बूढा बाप !
      न तरसे तू कभी जैसे मै भटका हूँ
      जीवन भर लाचार !!
      !
      !
      !
      डी. के निवातियाँ __@@@

      Share Button
      Read Complete Poem/Kavya Here तरसता बूढा बाप ! !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें