मंगलवार, 16 जून 2015

अपना हो आशियाना

तिनके-तिनके को जोड़ के
आशियाना बनाया जाता हैl
प्रेम प्यार का रंग चढ़ाकर
इसे खूब सजाया जाता है ll

रिश्तों की मजबूत नींव पर
ये आशियाना टीका रहता है l
इसके तिनके-तिनके को भी
विश्वास का सहारा रहता है ll

दर-दर भटकता रहता है इंसान
इस आशियाने की तलाश में l
उससे पूछो इसकी कीमत, जो
बिताता है रात, खुले आसमान में ll

हर किसी का रहता है एक सपना l
की आशियाना हो उसका अपना ll
कब उसके ये सपने पूरे हो पाएंगे l
या ये सपने यूँ ही बिखर जायेंगे लल

यहीं प्रार्थना करता हूँ……………….

ईश्वर कुछ ऐसा जादू दिखाना l
बन जाये सबका अपना आशियाना ll
जिस दिन सबके सर पर छत होगी l
यकीं मनो उस दिन मेरी इच्छा पूरी होंगी ll

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