छुत-अछूत  की
  अजब-गजब विडम्बना
  किस ने इसे बनाए
  कार्य उसका शुभ
  वह कैसे अशुभ हो जाए। 
बिना उसके लोग तरे नाही
  जीवन में जव भर ससरे नाही
  बिन उसके न हो शुद्धि
  फिर वह कैसे अशुद्ध हो जाए। 
मुख्य धारा से वे कटे रहे
  स्वाधीनता के लिए डटे रहे
  उन पर कोई शासन न करे
  अछूत बन वह पड़े रहे। 
माना वे गंदे रहते
  जीवन में ठंढे रहते
  उनके बच्चे नंगे रहते
  उसके लिए सिर्फ उसे ही
  क्यों दोशी ठहराए। 
छुत-अछूत  की
  अजब-गजब विडम्बना
  किस ने इसे बनाए
  नरेन्द्र तुम करो प्रयाश
  दो इसे मिटाए। 

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