प्रबल और प्रचंड और प्रपंच का प्राधिकार है
  सबल पर अंकुश नहीं, निर्बल पर प्रहार है
  प्रलेख, प्रादुर्भाव से प्रचार का वर्चस्व है
  शिलालेखों पर अंकित नाम अब निराधार है
  युगों युगों का इतिहास अब  प्राचीन नाममात्र है
  प्रकाश का प्रयास भी भेद न पाये, ऐसा अंधकार है
  प्रमाण के परिमाण का नहीं किसी को भान है
  पोंगा लगा कर चिल्लाता जाये वही सत्य और ज्ञान है
  परिवारों की परिभाषा बदल रही, अंतर्मन में प्रलाप है
   वैभव ऐश्वयर्य का आडम्बर दिखाता मानव, फिर भी हाहाकार है
  ज्वाला घट-घट जल रही स्वयम के अंतस को जला रही
  परन्तु पारितोषिक, पदक की होड़ ने किया बंटाधार है
  प्रातःकाल का विष सेवन रात्रि में करता विश्राम, वमन से
  प्रासंगिक नहीं पर्व है प्रमाद हुआ प्रसंग है
  प्रीत का परिहास है, प्रियतम का उपहास है
  प्रबल और प्रचंड और प्रपंच का प्राधिकार है
                                                                   – राजेश टावरी
गुरुवार, 25 जून 2015
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