रविवार, 28 जून 2015

।।गज़ल।। कह न पाया हूँ।।

।।गज़ल।।कह न पाया हू।।

तेरी यादो से हटकर मैं कभी भी रह न पाया हू।।
बड़ी तकलीफ है मुझको हकीकत कह न पाया हूँ ।।

हर बार रुक गयी है लबो तक बात आकर के ।।
तेरी दूरिओ के गम कभी मैं सह न पाया हूँ ।।

न मौका था न मुद्दत थी न तेरी रहनुमायी थी।।
बनकर आँख का आँशु तेरे मैं ढह न पाया हूँ।।

न तुमने न कहा मुझसे न मैं भी हा समझ पाया ।।
दरिया पास था मेरे मगर मै बह न पाया हूँ ।।

खुले है दिल के दरवाजे यकीनन आप के खातिर।।
क्योकि तुझे भूलने की कोई वजह न पाया हूँ ।।

R.K.M

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