……………..एक गज़ल …………………..
  ये मस्त हुश्न तेरा ,कोई जलजला ही लगे.
  मुझको तो आशिकों की , अब क़ज़ा ही लगे.
कि बढ़ रहा है दमा और घुट रही साँस भी
  दवा बेअसर ,दुआ किजिए कि दुआ ही लगे
किसने किया था सौदा, अस्मत का देश की
  गुलामी कि वजह कौन थे, सच पता ही लगे
बैसाखियाँ किसी को चलना, सिखाती नहीं
  है चला रहा जो सबको , वो होंसला ही लगे
‘हिन्दुस्तान’ को देखे तो कहे दुनिया बरबस
  कामयाबियों का ये कोई सिलसिला ही लगे
  गंगा धर शर्मा ‘हिन्दुस्तान’

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