बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

पर्यावरण

भ्रमांड में अनेको ग्रह और तारे ,
विचरण करते मारे मारे ,
पर जीवन ना सजा पाये,
मिल कर भी ये सब बेचारे,
यह सौभागय केवल ,
हमारी पृथ्वी ने पा कर,
हमें सौभाग्यशाली बनाया |

प्रकृति ने चित्रकार की भांति,
रंग भर इसे सजाया,
शिल्पकार की भांति घड़ ,
रमणीय बनाया,
जल भर ऋतू चक्र बनाकर,
विविध वनस्पतिओं व ,
जीवों ने जीवन पाया ,
जीवों मे निकला इक,
ऐसा जीव ,
जिसकी बुद्धि के आगे सब निर्जीव,
उसने ऐसा खेल रचाया ,
काया पलट दी धरती की ,
जल, थल , नभ जीत ,
सर्वोच्च होने का गौरव पाया |

सफलता अहंकार की जननी है ,
अहंकार पतन का दाता,
मानव नमक इस प्राणी ने ,
प्रगति की नाम पर किया विनाश,
लुप्त हो गए अनेको जीव ,
दूषित हो गई धरती ,जल और आकाश,
बढ़ने लगा तापमान ,
मौसम न रहा पहले समान,
कही सुखा, कही वर्षा आपार ,
बिगड़ गये जीवन आधार ,
जंगल कटे, आये कंक्रीट जंगल ,
अब कैसे हो प्राणी तेरा मंगल,
बना डाले विभिन परमाणु हथियार ,
चल जाएँ , लुप्त हो जीवन,
फैल जाये अंधकार |

अब तो प्राणी होश मे आ ,
जनसँख्या पर नियंत्रण पा,
देर बहुत हो चुकी,
उम्मीद अभी बाकि है ,
रोक दे विनाश का प्रकरण ,
बचा ले धरती का पर्यावरण |

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