फासले इतने बढे है
  दिलो मे आ गयी दरार
  भागदौड भरी जिंदगी मे
  टूट गये संयुक्त परिवार
  कित पाये संस्कार फूल अब
  दादी बाबा का उठ गया साया
  प्रेम दया अब कहाँ से लाये
  बहन भाभाई का साथ ना भाया
  कितने मजे थे उस आंगन के
  चाचा ताऊ के थे जो दुलारे
  चाची ताई की नोकझोंक मे
  गूंजते थे सबके किलकारे
  ना बोझ था जिम्मेदारी का
  तन्हाई का दामन नही था
  झगडते थे हर रोज शौक से
  पर दिलो मे कोई रंज नही था
  आमदनी कम थी भले ही
  परिवार एक सा खाता था
  दर्द हो जाये एक को
  परिवार आसूं बहाता था
  तेर मेर ने उखाड डाला
  संयुक्त परिवार के बरगद को
  मातृत्व गुम हुआ पैसो मे
  छीना बच्चो की जन्नत को
  आया की छाया मे पलते
  माता का दुलार ना ले पाये
  अपने कुटुंब से ही  दुर है जो
  वो धरा कुटुम्ब कैसे अपनाये
  नही बदली भारत की भूमि
  बस संस्कार बदल रहे है
  टूट रहे है संयुक्त परिवार तो
  जग बैर भाव मे जल रहे है
  कहने को है बात पुरानी
  पर आज भी इसकी जरूरत है
  जग की सब खुशियो की कुंजी
  संयुक्त परिवार की मूरत है।
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016
संयुक्त परिवार
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