आकर किसी की जिंदगी से, जब कोई लौट जाता है
  रूठ जाती है जिंदगी जैसे किसी का खुदा रूठ जाता है  
दे जाता है जख्म यादो के, जिनका कोई इलाज़ नही
  नासूर बन कर यादो का, ताउम्र दिल को तड़पाता है !!
फिर ना सुकून मिलता है, न दिल को करार आता है
  भूलकर सब कुछ जिस्म, ज़िंदा लाश बन रह जाता !! 
रह जाती है हृदय पटल पर एक अमिट छाप,
  लाख मिटाओ निशान, फिर कहाँ मिट पाता है !!
सुनी लगने लगती है हर एक रंगीन महफ़िल
  फिजाओ में भी फिर कहाँ नूर नजर आता है !!
मयखाने भी शमशान का रूप लिए नजर आते है
  नशीली शराब का भी फिर कहाँ नशा चढ़ पाता है !!   
कभी दर्द-ऐ-दिल का लुफ्त उठा के देख “धर्म”
  यूँ रूखी सुखी जिन्दगी जीने में कहाँ मजा आता है !!
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  रचनाकार :–>>  डी. के निवातियां

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