साम , दाम ,दंड ,भेद , आज सब अपना लूंगी…..
  अब इस दुनिया से हर पापी को मिटा दूंगी !!
इज़्ज़त को लूटा मेरी , रूह तक मेरी काँप उठी …
  इन लूटेरो के खिलाफ आज दिल में आग जल उठी !!
बनकर में द्रोपदी आज अपने अपमान का बदला लूंगी …..
  मैं इस दुनिया से हर एक दुशासन को मिटा दूंगी !!
साम दाम दंड……………मिटा दूंगी..
जो पहुँचे मेरे आँचल तक, उन हाथों को कटवा दूंगी……….
  जो लूट रहे इज़्ज़त नारी की उन पापियों को सूली पर चढ़वा दूंगी !!
बंद करो अब यूँ इज़्ज़तों से खेलना ……….
  देखना इक दिन यही नारी फिर से “महाभारत” छिड़वा देगी !!
नोट: मेरा उददेश्य किसी की भावनाओं को ठेस  पहुँचाने का नहीं लेकिन आज जो अत्याचार नारी पर हो रहा है,
          हर उम्र की लड़की चाहे वो बच्ची हो या जवान हो कुछ दरिंदे किसी को भी नहीं छोड़ रहे है नारी की इस
          निर्मम दशा ने मुझे अन्दर तक झंझोड़ कर रख दिया , यदि  हर नारी इन दरिंदो  के प्रति अपने मन में
           ये रोष भरले to मेरा मानना है की फिर कोई दुशासन किसी भी द्रोपदी का चीरहरण करने की सोचेगा
           भी नहीं |
रचनाकार : निर्मला ( नैना )
Read Complete Poem/Kavya Here " नारी का रोष "
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