कैसे भुला दू
तुम संग बिताये वो हसीँ पल
  जिनमे  न रात का पता था
  न दिन की होती कोई खबर
  उन यादो को मैं कैसे भुला दूँ !!
घुमड़ते बादलो के संग – संग
  तेरा घनी जुल्फों का लहराना
  सावन की फुहारों के संग-संग
  तेरा वो प्यार का बरसाना,
  वो हसी पलो मै कैसे भुला दूँ !!
कार्तिक की काली सर्द रातो में
  टक – टक सितारों का गिनना
  कोहरे की चादर में लिपटी सुबह
  दीद्दार के इन्तजार में ठिठुरना
  उन सर्द यादो को कैसे भुला दूँ !!   
वसंत में चढ़ता फाग का रंग
  फूलो से लहलाने का तेरा ढंग
  कलि सा चटकता अंग – अंग
  मन की एकग्रता करता भंग
  सौंदर्य का वो रूप कैसे भुला दूँ !!
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  डी. के. निवातियां___!!!

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