सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

"पत्थर दील पे मेरे अब कोई असर न होगी"

पत्थर दील पे मेरे अब कोई असर न होगी ।
मर भी गये तो अब तुमको खबर न होगी ।
खो जायेंगे उस अँधेरी तनहा रातों मे ,
के गर सूरज भी निकले तो सहर न होगी ।
तुम्हे देखता रहे चाहे सारा जहाँ मगर ,
निगाहें मोहब्बत की तुम पर नजर न होगी ।
चाहोगे मुझे गर ख्वाब मे भी बुलाना ,
तो आँखे तुम्हारी बन्द रात भर न होगी ।
ढूंढ़ते रहोगे चेनो राहत रात दिन ,
सुकुन से जिंदगी फिर भी बसर न होगी ।
लाख कोशिसे करोगे गर मर जाने की तुम ,
तुम्हारी जिंदगी फिर भी मुख़्तसर न होगी ।
-एझाझ अहमद

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here "पत्थर दील पे मेरे अब कोई असर न होगी"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें