तनहा थे तो भले थे हम,
  हम ईश्क के कर्जदार न थे ।
  अब काफी है मुझको एक ईशारा,
  हम पेहले समझदार न थे ।
  एक ईशारे पे तेरे सब लुटा दे,
  हम ईतने भी दिलदार न थे ।
  मर्जी से दिया उसने सब मुझको,
  हम उसके कोइ हिस्सेदार न थे ।
  मौत की वजह से मिली दो गर्ज जमीं ,
  हम पेहले से जमींदार न थे ।
                              -एझाझ अहमद

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