शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

भीड़ का हिस्सा

मां
तुमने कहा था न
मत बनना
भीड़ का हिस्सा
मैं नहीं बना।
पर मां
तुम तो चली गई वहां
जहां से कोई लौटता नहीं।
देखो न
भीड़ के पास क्या नहीं है।
गाड़ि़यां, आदमी, दौलत, औरत, शराब, सत्ता
वो मस्त हैं।
उनके बच्चों का बीमा है
बीवी के लिए सातों दिन के कपड़े हैं
अलग-अलग रंग और डिजाइन के
बच्चे मोटर में बैठते हैं
कलर के हिसाब से
इस दुनिया ने मुझे
दो जून की रोटी के लिए
तरसा दिया है मां
भीड़ का हिस्सा होता तो
तुम्हारे पोते-पोती के
स्कूल का फीस भरता
प्रिंसिपल की रिमाइंडर
मेरे मोबाइल के
मैसेज बाक्स तक आने के पहले
1000 बार सोचती
पर
तुम्हारा कहना मैंने माना
मैं भीड़ का हिस्सा नहीं बना।
मां,
एक बात बता दो।
सपने में ही बता देना।
जब तुम जानती थी कि
भीड़ का हिस्सा बनने में ही फायदा है
तब तुमने अपने इस भोले बच्चे को
भीड़ से अलग रहने की
कसम क्यों दी थी मां?
क्यों???

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here भीड़ का हिस्सा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें