शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

तू हर इक शै में बस्ता है

तू हर इक शै में बस्ता है, कहाँ सबको समझ आता है तू
है शुक्र तेरा मेरे साहिब, हर जगह नज़र आता है तू

हालात कभी मुश्किल जब हों, तू हर मुश्किल आसान करे
जब सोच नहीं पाता हूँ मैं, मेरी सोच में बस जाता है तू

मेरी नज़रें तो सीमित हैं, तेरी नज़रों में कुल आलम
जब समझ न मेरी काम करे, मेरा काम वो कर जाता है तू

दुनिआ की नज़रों में कातिल, बदमाश लुटेरे होंगे वो
पर मुझे बचाने मुश्किल में, उन घटों में भी आता है तू

मेरी समझ से दुनिआ बाहर है, बस मैं तो मुहब्बत करता हूँ
नफरत करने वालों में भी, मुझको तो दिख जाता है तू

कविता लिखने की कोशिश में, कभी कलम हाथ में होती है
जब शब्द नहीं मिलते मुझको, आके खुद लिखवाता है तू

‘रवि’ नाम तो अपना लिखता हूँ, पर इतना भी काबिल मैं नही
बस काम वोही मैं करता हूँ, जो मुझसे करवाता है तू

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