जिंदगी जीना है एक कला
  ये फन हर किसी को कहाँ आता है
  जिसने जाना भेद इसका
  वो खुशियों भर भर झोली पाता है !!
जीवन मृत्यु खेल जीवन का
  हर प्राणी से इसका गहरा नाता है !
  लोक परलोक की बात न्यारी
  मन मंदिर में पूर्ण भ्रमाण्ड समाता है 
सुख दुःख एक तराजू के पलड़े,
  दोनों में सामंजस्य कब बन पाता है !
  पल भर के दुःख के आगे
  जीवन भर का सुख फीका पड़ जाता है !!
भाव नकारात्मक ह्रदय पाले
  ऐसा इंसान मंजिल को कब पाता है !
  सकारात्मक हो विचारधारा
  वो असंभव को संभव कर दिखाता है !!
समझ सको तो समझ लो प्यारे
  तुमको भी “धर्म” ये मन्त्र सिखलाता है !
  पाना हो गर जीवन का आनंद,
  शांत चित्त और स्वच्छ मन बनाना है !! 
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  @@@___डी. के. निवातिया___@@@ 

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