प्यार तुम्हारा उसे मुबारक
  जिसके लिए रखा संभाल के !
  कुछ पल अर्पण कर दो तुम
  हमारे लिए स्नेह भरे दुलार के !!
नजरे इनायत करो न करो
  बस इतना हम पर कर्म कर दो !
  रख कर सर अपने पहलू में
  अपने आँचल की छाँव कर दो !!
इरादे अपने सर्वथा नेक है
  गलत समझकर भर्मित न हो !
  सुकून के पल कुछ ढूंढते है
  दिल बहले नजर गुस्ताख़ न हो !!
जानना चाहो तो दिल से पूछ लो
  तुम्हारी ह्या का कितना कद्रदान हूँ !
  कर देना माफ़ अगर शरारत हो
  तुम्हारी रिआयत में हो गया नादान हूँ !!
ये इल्तिजा, ये गुजारिश है
  हमारी भावनाओ को दिल से पढ़ना !
  करना अपने ह्रदय में अंतर्द्वंद
  फिर किसी फैसले पर तुम आगे बढ़ना !! 
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  !
  !
  ………डी. के. निवातिया…..

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