सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

जिंदिगी

पूछा बुला के जिंदिगी ने एक दिन,
हर वक्त क्यों परेशान रहता है,
तेरा ऐसा क्या बुरा कर दिया मैंने,
जो तू मुझपे पशेमान रहता है,
पड़ गया सोच में की क्या जवाब दूँ,
गिनवा दूँ गम अपने या आसुओं का हिसाब दूँ,
पास मेरे ऐसा क्या है जिसपर फकर करूँ,
या बस सिर्फ जिन्दा हूँ इसका जिकर करूँ,
खामोश देख मुझको ज़िंदगी मुस्कुराई,
फिर आगोश में अपने लेकर उसने मुझे दुनिया दिखाई,
कभी गरीब क़े घर की रोटी, तो कभी टूटी झोपडी देखाई,
कभी जवान बेटे की मौत का मातम मानते माँ बाप दिखाए,
तो कभी अस्पताल ले जाकर मरते हुए बच्चे दिखाए,
दिखाना तो और बहुत चाहती थी ज़िंदगी,
पर मुझे होने लगी थी खुद पर शर्मिन्दिगी,
फिर ज़िंदगी ने मुझे प्यार से समझाया,
मिला है जितना उसी मैं ख़ुशी तलाश,
ज़िंदगी मे गम नहीं, ग़मों मैं ज़िंदगी तलाश,
है कोई इंसा जिसने ग़मों को न झेला हो,
की मुकद्दर मैं किसी क़े हरदम खुशियों का मेला हो,
ख़ुशी और गम एक ही सिक्के क़े हैं दो पहलु,
समझ चुके हो तुम मुझे तो मैं चलूँ,
मैंने कहा थोड़ा रुक ज़िंदगी, जरा गले लगाने दे,
अब तक जो थे तुझसे शिकवे गिले, सब मिटाने दे,
ज़िंदगी ने कहा तू तो समझ गया, औरों को भी समझाना,
मिलती नहीं मैं बार बार, हर किसी को बताना,
छोड़ शिकवे गिले जो मुझे जियेगा,
वादा है मेरा वो बार बार मुझसे मिलेगा |

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