मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

कलयुग यही कहलाता है

कलयुग यही कहलाता है कलयुग यही कहलाता है
ये जमाना हुआ बुरे लोगों का, हर बक्त लगे ठोकर सा यहाँ…….
दिन रात दर्द मिलता रहता है………….
जख्म ना भरता, दर्द ना मिटता, गहरा होता जाता है
जब अपने छोर जातें हैं दुनियां, उम्मीद ही जीना सिखाता है
बोझ बदती है कन्धों पर सिर्फ रोना सा आता है
जब दर्द कोई दे जाता है, जब दर्द कोई दे जाता है
अच्छों की है ना खैर यहाँ, सच्चों को सब तडपता है…..
बुराई की होती जित सदा…….
कलयुग यही कहलाता है……….
पैसों पे बिकती जज्बातें,गरिवों को सब झुथ्लारा है..
भगवान बन बैठा रिश्वतखोर यहाँ,जीवन भी ना वो बचाता है………
अपने कर्मों को भूल चूका चंद रुपयों पे बिक जाता है….
देखो ये नजारा कलयुग का……….
कलयुग यही कहलाता है…………
जहां दुश्मनी है जगह जगह, धोखा मिलती है हर जगह
अपने जब साथ छोर जातें हैं,दूसरों से भरोशा उठ जाता है…………
लोगों को ना सुहाती है किसी की खुशी, बिन गलती की सजा मिल जाती है
जब अपने छोर जातें हैं दुनिया, बस याद उन्की रह जाती है…
यादों के सहारे जीने की कला हमको सीखना पड़ जाता है……..
जीवन से भरोशा उठ जाता है, जीवन से भरोशा उठा जाता है….
कलयुग यही कहलाता है …………………२
पता नहीं सच्चों को लोग इतना क्यूँ तड़पाते है,
और सच्चाई के पथ पर चलना भी सिखलाते हैं………
झटके पे झटका दे जातें हैं,….
तब दर्द सा उठता है सिने में,आग सा जलने लगता है……
च्न्गारी की लहर से वो अपने पथ को छोर जातें हैं,
एक जख्म ना भरता है दिल का दुजा उभर कर आता है……
कलयुग यही कहलाता है……….

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