तुम्हें देखकर
  तुम्हारी आँखों से होकर
  वक़्त को भी ठहरा देती हो,
  आखिर हो कौन तुम.
  बेशक तुम कोई
  किताबी परी तो नहीं
  तुमसे मिलता हूँ जब भी मगर
  आसमां तक ले जाती हो तुम.
  सोचता हूँ तुम्हें
  मांगता हूँ तुम्हें
  हर बार हार जाता हूँ तुम्हें
  इसके बाद भी मुझमें जी जाती हो तुम.
  याद नहीं मुझे
  आखिरी बार तुमसे कब मिला
  जाना था तुम्हें ही
  लेकिन अब तक छोड़कर नहीं गयीं तुम.
  सच कहूँ तो
  सोचने का वक़्त नहीं तुम्हें अब
  निकलता हूँ जब भी रास्तों पर
  जाने क्यों साथ आ जाती हो तुम.
  तुमने ही तो कहा था
  हमेशा साथ रहना है हमको
  बन गया आवारा में तुम्हें ढूँढ़ते-ढूँढ़ते
  जाने कहाँ चली गयीं तुम.
  सब कुछ खत्म
  हो गया था हमारे बीच
  सगाई है आज तुम्हारी
  और मुझसे मिलने चलीं आयीं तुम
  आखिर हो कौन तुम..??
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016
आखिर हो कौन तुम..??
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