शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता...

“मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

“के हाथों की लक़ीरों में, लिखा है नाम बस तेरा,

जो साँसे चल रही हैं यूँ, ये तो एह्सान है तेरा,

ये धड़कन कब की रुक जाती, जो तेरा साथ न होता,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

“मेरी तक़दीर में तुमको लिखा है कुछ ख़ुदा ने यूँ,

जो तुम ना हो तो मर जाऊं, जो तुम हो तो मैं ज़िन्दा हूँ,

तेरे होने से ही मैं हूँ, ना तू होती ना मैं होता,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

“मेरे हाथों में बसती है, तेरी खुशबू मेरे हमदम,

मेरी आँखों में रहती है, तेरी तस्वीर अब हरदम,

मेरी परछाइयों में भी तेरा ही अक्श है दिखता,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

“मेरी हर सोच में हो तुम, तुम्ही तक सोच है मेरी,

मेरे सपने मेरी नींदे, अमानत हैं ये सब तेरी,

मेरा कुछ भी नहीं होता, जो तुमने न दिया होता,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

“मैं चंदा हूँ अधूरा सा, के मेरी चांदनी हो तुम,

मैं दो लफ्ज़ो का शायर हूँ, के मेरी मौशिकी हो तुम,

तुम्हे लफ्ज़ो में ढालूं क्या, के है कोई नहीं तुम सा,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

“ज़माना हम से रखे लाख शिकवा, गम नहीं है अब,

है तेरा हाथ हाथों में, तो ज्यादा सोचना क्या तब,

ज़माना कुछ तो बोलेगा, ज़माना चुप है कब रहता,

अगर तुम ही नहीं होते, तो फिर मैं भी नहीं होता,

मेरे होने, न होने का, कोई मतलब नहीं होता।”

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