हमने      जज़्बा 'ए'  मोहब्बत     समेट   ली ,
  जिस  दर  से  भी  गुज़रे,  खुशियां  समेट   ली .
यूँ  तो  ज़ख्मों  की  कमीं  न  थी  जहाँ में ,
  हमने   हर   दर्द  की   मलहम    समेट  ली .
यार  नाज़ायज़  है  वक़्त  की  तदबीर  सोचना ,
  हमने  हर  लम्हे  में   जिंदगी   समेट   ली .
बहुत   मन्नतें  कर  ली  खुद  की  खा.ना   में ,
  'राज़ '   उसने  ख़ुदी  में  ख़ुदाई  समेट  ली .
ये   न  था  की  रंजोगम  कुछ  कम  थे  इस  तरफ ,
  हमने  बस  दर्द  की  नसीबी  समेट  ली 
अंदेशा  है  तेरे  साथ  ख़ाक  हो  पाएं ,
  पर  तेरे  साथ  उम्र  'ए ' रूहानियत  समेट  ली .

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