माना के खता करते रेहते है हम
  पर आकर हमसे कोइ गिला तो करो
  वफा ना सही  तो बेवफ़ाई ही सही
  आपस मैं शुरू कोई सिलसिला तो करो
  ये हसीन राते और भी हसीन करदे हम
  ईन रातों मे हमसे आप मिला तो करो
  हमें भी कहा पसंद है ये अँधेरे
  चराग जला कर आप ऊझला तो करो 
गुलाबो से रहा करते साथ हमारे
  बगैर हमारे भी गुलाबो से खिला तो करो
  पता है के बेवफा हो गये है आपकी नजर मैं
  पर आप अपने दील से हमारा निकाला तो करो
                                                 -एझाझ अहमद

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