शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

माना के खता करते रेहते है हम

माना के खता करते रेहते है हम
पर आकर हमसे कोइ गिला तो करो
वफा ना सही तो बेवफ़ाई ही सही
आपस मैं शुरू कोई सिलसिला तो करो
ये हसीन राते और भी हसीन करदे हम
ईन रातों मे हमसे आप मिला तो करो
हमें भी कहा पसंद है ये अँधेरे
चराग जला कर आप ऊझला तो करो

गुलाबो से रहा करते साथ हमारे
बगैर हमारे भी गुलाबो से खिला तो करो
पता है के बेवफा हो गये है आपकी नजर मैं
पर आप अपने दील से हमारा निकाला तो करो
-एझाझ अहमद

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