शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है

जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है,
है ख़ुशी की भी ग़मों की भी जरुरत है,
ना चला है जोड़ जीवन में किसी भी वीर का,
वक़्त के साम्राज्य में किसकी हुकूमत है ?

बचपना, क्या बुढ़ापन,कैसी जवानी है,
तेरी-मेरी, यार सबकी इक कहानी है,
मुस्कुराहट खिल रही थी जिन लबों पे कल तलक ,
आज उन आँखों में भी खामोश पानी है,

था कही जिन आँखों में इक जगमगाता-सा दिया,
वक़्त की राहों में अब वो आँख बूढ़ी है,
जिस तरह हमको जरुरत है सहारों की कही,
उस तरह कुछ मोड़ पर ठोकर जरुरी है,

दोस्त क्या, दुश्मन हैं क्या, सब ही दीवाने हैं,
हैं कभी दुश्मन भी अपने; अपने बेगाने हैं,
हैं कभी खामोश लब, कभी लब पे गाने हैं,
सबकी अपनी एक दुनियां, अपने तराने हैं,

रात की चादर तले जो चाँद भारी है,
सूर्य की दहलीज़ पे वो भी भिखारी है,
हार के, रो के किसने किस्मत सवांरी है,
मुस्कुरा, गम को भुला, दुनियां तुम्हारी है,

हँस के, गा के, तुम बिता लो,जिंदगी के पल हैं जो,
मौत आने पर तो सबकी ही फजीहत है,
जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है,
है ख़ुशी की भी ग़मों की भी जरुरत है…

“साथी “

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