मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

" व्याकुल हृदय की वेदना "

आज सुनाती हूँ मित्रों मेरे मैं………
अपने इस व्याकुल हृदय की वेदना ….!!

जन्म हुआ जब इस संसार में मेरा….
बहुत प्रफुलित था तब मन मेरा……..
कितने प्यारे रिश्ते है इस संसार के…..
कितने सुन्दर नज़ारे है इस संसार के…
आज पता चला है मुझे अपनों का ……
जब जागी मेरे मूर्छित मन की चेतना…….. !!

आज सुनाती हूँ…………….हृदय की वेदना..

हुआ विवाह मेरा हो गयी में पराई…….
जाने खुद से या अपनों से हुई है जुदाई….
माँ ने समझाया पति है ! परमेश्वर तेरा…….
तुम सदा ही उसकी हो दासी…….
वो है! आधा अंग तुम्हारा और तुम हो उसकी आधी…..
उसी को रिझाना तुम और उसी से है रीझना तेरा………. !!

आज सुनाती हूँ……………………हृदय की वेदना..

छोड़कर अपने प्यारों को……
मैं परायों के घर आई……..
किसी के मन में मैं खटकी……..
और किसी के मन को मैं भायी………..
माँ ने कहा था जो फ़र्ज़ है तेरा वो तुम पूरा करना……..
इस कांटो की बगिया को, तुम निर्मल जल बनकर सींचना…. !!

आज सुनाती हूँ……………………हृदय की वेदना..

सभी फ़र्ज़ पूरे कर दिए हैं! अपने मैने….
बेटी, बहन, बहू और बन माँ के………….
और भी जीवन में जाने अब बचा हैं! क्या………
थक चुकी हूँ मैं अब इन बंधनो में बंधकर इस मोड़ पे आकर……
बस करो अब तो लोगो मुझे यहाँ वहां से खींचना………….!!

आज सुनाती हूँ मित्रों मेरे मैं …..
अपने इस व्याकुल हृदय की वेदना…… !!

रचनाकार : निर्मला ( नैना )

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