बचपन  में  पढ़ी  –
  किताबें ,
  अब  सुकून  नहीं  देतीं .
उनके  साथ ,
  पन्नें पलटते ,
  देखे  थे ,
  मैंने ,
  कई  सपने .
  तरह  तरह  के
  और  सारे  रंगीन .
अब वक़्त के  साथ,
  बिखर  गए  हैं  सभी .
पर  मज़ा  यह  है  की,
  किताबें  अब  भी  हैं  मेरे  पास,
  उन  सपनो  की  तस्कीद  लिए,
  जो  बाँट  सकती  हैं  – सपने ,
  मेरे  और  उनके  बच्चों  में .

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