जब आप आते थे घर पर
  घोड़े मेरे बन जाते थे
  चाकलेट लाते थे टाफियां
  बड़ा सारा प्यार लुटाते थे 
अपनी पीठ पर मुझे
  बगीचा सारा घुमाते थे
  वर्दी पहनकर कड़क वाली
  मूछों का रौब दिखाते थे 
एक दिन आये कुछ अंकल
  मूर्ति आपकी बना गए
  तुम्हारे पापा  नहीं लौटेंगे
  शहीद  आपको बता गए
तुम्हारी मूर्ति के आगे से
  मै रोज़ गुजरती हूँ पापा
  तुम तो कुछ बोलते नहीं
  ढेरों शिकायत करती हूँ पापा   
देखो पापा ये नहीं चलेगा
  मै तो आपकी परि हूँ ना
  तुम अब कहानी नहीं सुनाते
  मै तो कब से खड़ी हूँ ना
मुझे नींद नहीं आती तुम बिन
  तुम्हारी तस्वीर घूरती रहती है
  कभी सोचा  तुमने, तुम्हारी
  नन्ही बेटी पर क्या गुज़रती है   
मुझे नहीं पता सरहदें
  इन सब को मिटा दीजिये
  मुझे मेरे पापा चाहिए, बस
  उनको लौटा दीजिये 

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