गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

सरहदें

जब आप आते थे घर पर
घोड़े मेरे बन जाते थे
चाकलेट लाते थे टाफियां
बड़ा सारा प्यार लुटाते थे

अपनी पीठ पर मुझे
बगीचा सारा घुमाते थे
वर्दी पहनकर कड़क वाली
मूछों का रौब दिखाते थे

एक दिन आये कुछ अंकल
मूर्ति आपकी बना गए
तुम्हारे पापा नहीं लौटेंगे
शहीद आपको बता गए

तुम्हारी मूर्ति के आगे से
मै रोज़ गुजरती हूँ पापा
तुम तो कुछ बोलते नहीं
ढेरों शिकायत करती हूँ पापा

देखो पापा ये नहीं चलेगा
मै तो आपकी परि हूँ ना
तुम अब कहानी नहीं सुनाते
मै तो कब से खड़ी हूँ ना

मुझे नींद नहीं आती तुम बिन
तुम्हारी तस्वीर घूरती रहती है
कभी सोचा तुमने, तुम्हारी
नन्ही बेटी पर क्या गुज़रती है

मुझे नहीं पता सरहदें
इन सब को मिटा दीजिये
मुझे मेरे पापा चाहिए, बस
उनको लौटा दीजिये

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