बुधवार, 29 अप्रैल 2015

Guzarish

अ बसंती पवन, अ महकते मधुबन,
अ घनघोर घन, अ गुमनाम गगन।
सुलझा दे मेरी ये उलझन,
मिटा दे दिल मेँ जगी तङपन॥
अ गुस्ताख मन, अ बेताब धङकन,
अ साँस के वहन, अ तरसते नयन।
मत बढ़ा मेरा पागलपन,
मिटा दे मेरे ख्याल-ए-ज़हन॥
अ भादोँ अ सावन, अ वक्त के चलन,
अ गिरे चिलमन, अ धधकती अगन।
बढ़ा दे सनम की मेरी ओर झुकन,
ताकि होना पड़े उन्हेँ मेरा मज़बूरन॥

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