देश का जनाज़ा है ये कैसा है तमाशा जाने,
  देश का किसान आत्महत्या पे उतारू है।
  कैसी है समस्या जाने अन्नदाता परेशान,
  देश की सरकार भी अब हो गई  बीमारू है।
  खो गये है गांधी बाबा, खो गए है शास्त्री भी,
  खो गए पटेल सरीखे किसान रखवारु है।
  अब तो बचा है देश में केवल बाजार देखो,
  और बचे है वो सारे नेता जो बाजारू है।१।  
राजधानी मौन है और जनता में है खौफ भारी,
  देश की जनता ने देखो उंगली उठाई है।
  देश की गद्दी पर बैठे सारे भांड एक जैसे,
  सारे के ही सारे खाते रबड़ी मलाई है।
  नेताओ के साथ देखो मिल गया आसमां भी,
  जिसने बारिस के संग कहर बरसाई है।
  अब तो सुनो तुम कान्ह कन्हाई मेरे,
  नहीं जो सुनोगे तो ये तेरी जग हँसाई है।२।  
हत्या के दोषी है सारे देश की जो सरकारे,
  देश के किसान की ना कोई सुनवाई है।
  कोई पैर पकड़ाता, कोई करता है बाते,
  किसी के भी देखो मन दया नहीं आई है।
  सब करते है देखो झूठी ये लफ्फाजी अब,
  किसी की भी आँख जरा सरम न हयाई है।
  लूट-लूट खा गए जो देश को वो जाने कैसे,
  कर रहे है देखो इस देश की रहनुमाई है।३। 
अब तो संभल जाओ छप्पन इंची छाती वालों,
  आने लगी अब सबके सामने सच्चाई है।
  बंद करो प्रलाप और झूठी बाते सारी,
  मान जाओ गलती इसी में ही भलाई है।
  कर रहे आत्महत्या देश में किसान देखो,
  जग मे ये तूने कैसी छवि अब बनाई है।
  छप्पन इंची छाती वालों देश की गद्दी को छोड़ो,
  देश की जनता में अब यही मांग छाई है।४। 
–	मनोज चारण (गाडण) "कुमार" कृत
  mo. 9414582964

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