शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

भरोसा

भरोसा

अभी जबकि
नहीं आयी हो तुम
तुम्हारे आने की आहट भर से
महकने लगा है घर
जाते जवाते
अपनी नाजुक नरम हथेलियों से
तुमने घर नहीं भरोसा सौंपा था
जिसे मैनें रखा है
कायम। चाहता हूँ
बचा रहे दुनिया में भी
चुटकी भर
नमक
गंगाधर ढोके

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