अन्नदाता के घर का आँगन आज भी बंजर और सुना है |
  अन्नदाता आज भी बेजार है और आज भी बेखबर है |
  अन्नदाता का अत्तीत, आज और कल भी बेजार है|
  विद्यानो के सम्मलेन में विद्यान भाषण देते है |
  लम्बी –लम्बी बाते और बहस करते है |
  वादे करके अपनी बात से कल मुकरते है |
  अन्नदाता की भूमि आज भी बंजर और नीलम है |
  अन्नदाता के घर का आँगन आज भी बंजर और सुना है |
  अन्नदाता आज भी बेजार है और आज भी बेखबर है |
  अन्नदाता सारा जीवन सरकारी नियमो में उलछा हुआ है |
  अन्नदाता की भूमि पर बड़े लोगो के वादों का कब्ज़ा है |
  अन्नदाता आज भी विद्यानो के वादों का भूखा है |
  अन्नदाता के घर का आँगन आज भी बंजर और सुना है
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015
अन्नदाता के बारे में किसने सोचा ?
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