मूषक से साक्षात्कार
एक दिन स्वप्न में
  मूषक से हुआ साक्षात्कार
  कहने लगा वो मुझसे
  कर दूंगा सब बर्बाद
मूषक राज हमारा नाम है
  नुक्सान पहुंचाना हमारा काम है
  पेट भरने की खातिर अब
  कर देंगे सब खल्लास हैं 
उससे कहा मैंने ओ मूषक
  कर्म ही है तुम्हारा नुक्सान पहुँचाना
  मत करो व्यर्थ की वार्तालाप
  पेट भरने का तो है बहाना 
सुनकर वो तिलमिला गया
  और फिर खिस्या गया
  बोला बड़े रौब में तब
  सुन लो कान खोलकर अब 
मेरी कथा से अनजान हो तुम
  अज्ञानता की बड़ी खान हो तुम
  बने फिरते महान हो तुम
  महानता पर अत्याचार हो तुम
मूषक से पहले दानव राज थे हम
  हमारी कथा में बड़े महान थे हम
  ब्रम्हा जी के दिए वरदान थे हम
  जीवन में बड़े खुशहाल थे हम 
हम पर सितम कुछ ऐसा ढाया
  गणेश ने तुम्हारे हमें मूषक बनाया
  वाहन बनाकर हमको अपना
  पूरी स्रष्टि का भ्रमण कराया
एक तो गणेश ने तुम्हारे
  हालत ख़राब कर दी है
  कर-कर के सवारी हमारी
  कमर तोड़ डाली है 
और तुम लोग हमें मारने का प्रयत्न करते हो
  हमारे लिए रैट किलर लाते हो
  पिंजरा लाकर हमें पकड़ते हो
  हमारी ऐसी तैसी करते हो 
भूल गए
  स्वभाव से हम राक्षस हैं
  तुम्हारे गोदामों में
  दुकानों में तबाही मचा देंगे 
मत करो हमें पकड़ने का हठ
  अन्यथा बहुत पछताओगे
  वश में नहीं आने वाले हम
  हमसे सदैव मुँह की खाओगे 
अब मैं पूर्णतया समझ चुका था
  जिसकी हो प्रवृति राक्षसों वाली
  ऐसा मेरा उसको मत था
  मति रहती उसकी अक्सर खाली 
स्वप्न में उसका भयानक द्रश्य था
  विशालकाय उसका तन था
  देखकर यह द्रश्य स्वप्न टूट गया था
  आँखों से मेरी ओझल मूषक हो गया था 
देवेश दीक्षित
  9582932268 

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