देख गांधी तेरे देश में आज उठ ये कैसा भूचाल रहा !
  आजाद देश का गरीब किसान अपनी जान गवां रहा !!
भूख है कि मिटती नही इन सत्ता के व्यभिचारों की !
  गरीबो के लहू से आज वो प्यास अपनी बुझा रहा !!
भूल गए क्यों वो प्रण तुम्हारा देश इस को चमकाने का !
  अपनी झूठी शान कि खातिर देश को नीचा दिखा रहा !!
एक दूजे पर लांछन रखकर खुद को साफ़ बतलाता है !
  बनाकर भोली जनता को मुर्ख वो खुद मजे उड़ा रहा !!
भूल गए नारा “लाल बहादुर” का जय जवान जय किसान
  आज देश में दोनों की हालत का हर नेता बना मजाक रहा !!
नेता रहते बंगलो में, करते नाश्ता दूध बादाम केसर का !
  गरीब, किसान आज भी दो वक़्त की रोटी को जूझ रहा  !!
जो जितना गुमराह करे जनता का प्रिया बन जाता है !
  सत्य राह को जिसने पकड़ा वो बन यहाँ गुनेहगार रहा !!
चोर, उचक्के, अनपढ़, आवारा देश के पालनहार बने है
  पढ़ा लिखा सभ्य मानव उनके हाथो बन हथियार रहा !!  
लम्बे चौड़े भाषण देते बात जो करे मान मर्यादा की !
  आज देश में उनके कारण फ़ैल आतंक का राज रहा !!
बात करे जो समभाव की,दिखावे की पूजा करते है !
  आज नारी पर सबसे ज्यादा कर वो अत्याचार रहा !! 
लहूलुहान है धरती माता, अपने ही सपूतो के खून से
  देख के रोते होंगे बलिदानी देश कैसा हो श्रृंगार रहा !! 
देख गांधी तेरे देश में आज उठ ये कैसा भूचाल रहा   !
  आजाद देश का गरीब किसान अपनी जान गवां रहा !!
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  डी. के. निवातियाँ ________@@@

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