शनिवार, 25 अप्रैल 2015

माँ.....

माँ….कहने को
एक छोटा सा शब्द
मगर स्वयं में समेटे हुए
समस्त ब्रम्हांड।

जिसके चरणों में स्वर्ग
हृदय मन्दिर और
उसमें वास करते
तैतींस करोड़ देवता।

तनिक अभिमान नहीं
बस वात्सल्य,ममत्व
स्वयं की पीड़ा का
कभी अनुमान नहीं।

बस बच्चों के चेहरे पर
सदैव खिलती रहे मुस्कान
चाहे प्राण गंवाना पड़े
हर कष्ट गंवारा है उसे।

आपाधापी से व्यथित हृदय
जब आता है तेरे आँचल में
और तेरे स्पर्श मात्र से ही
शांत सरल हो जाता है।

तू साहूकार तो है माँ
पर रक्त की अंतिम बूँद
तक भी न चुका पायेगा
कोई पुत्र जग में तेरा ऋण।

वैभव”विशेष”

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