दिल दुःखता है, जब अपने
  ही अपनों को समझ नहीं पाते l
  हम कुछ कहना भी चाहें तो
  चाहकर भी कुछ कह नहीं पाते ll
इसी  का दुसरे फायदा उठाते है l
  स्वयं में लाख कमी होते हुए भी
  दूसरों को उनकी कमी गिनाते है  ll
कोई किसी के  दुःख से दुखी नहीं
  कोई किसी के सुख से सुखी नहीं ll
  रिश्ते रबड़ की तरह खीचते जा रहे है l
  खिंचाव के निशां उनमे साफ नजर आ रहे है ll 
दूसरों  के लिए पल-भर का समय नहीं l
  अपने लिए समय की कमी नहीं ll
  रिश्तों को पैसे से तोला जा रहा है l
  तभी रिश्तों का अपना वजूद खोता जा रहा है ll
लाख माया हो कोई किसी को कुछ नहीं देता
  फिर क्यों अपनों के मिलने पर वो मुँह फेर लेता ?
  इस दुनिया में सभी अपनी किस्मत का खाते है
  फिर क्यों ये रिश्तें पैसो में तोले जाते है ?
  फिर क्यों ये रिश्तें पैसो में तोले जाते है ?

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