बाँझ होने पाए ना यह लेखनी
  पीर लिख ले
  मीत गा ले !!
  गर्भिणी हो आज रह ले
  विरहिणी सम दर्द सह ले
  तोड़ कर जंजीर चुप की
  आतंरिक एहसास कह ले !
  जन्म ले जब कोई रचना
  हृदय हर्षित
  जीत गा ले !!
  करुण होकर,क्रुद्ध होकर ,
  द्रवित हो मन बुद्ध होकर !
  सृष्टि की पदचाप सुनले
  प्रेम-पथ का हाथ गह ले
  छंद-लय-गति जोड़ना
  ताड़ना कितनी मिले मत छोड़ना
  गीत गा ले !
    भावना तिवारी 

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें