बुधवार, 29 अप्रैल 2015

बस हूँ मैँ तेरा

रोको न मुझे मेरे यारोँ, करने दो सनम को याद जरा।
मेरी जिँदगी बस है उनसे, जाने उनमेँ मैँ हूँ क्यूँ रंगा॥
पागल यूँ नहीँ उसके पीछे, कसूर है उसका भी थोड़ा।
बड़ा अहम है अब मेरे खातिर, वो हर लम्हा कतरा-कतरा॥
ज़िँदा हूँ मेहबूब से ही, मेरे रोम-रोम मेँ सनम बसा।
साँस भी लूँ तो लूँ कैसे, मेरी साँसोँ को उसने जकड़ा॥
धड़कन भी अब बड़ी भारी है, मेरी हर धड़कन पर वो बैठा।
किसी डगर चलूँ तो चल न सकूँ, उससे ही शुरु मेरा हर रस्ता॥
कैसा हूँ मैँ क्या हालत है, मेरी हालत का उसे दो तो पता।
डूबा रहता हूँ उनमेँ ही, उन यादोँ का है मुझपे नशा॥
कैसे कहदूँ हमदम को मैँ, उसने मुझपे क्या ज़ुल्म किया।
लग जाए न उसके दिल पर जो, कहदूँ बेरहम ज़ालिम बेहया॥
दिल की बातेँ दिल से निकलेँ, तुम साथ तो दो मेरा इतना।
हिम्मत देना मैँ जब उनको, कहने जो चलूँ बस हूँ मैँ तेरा॥

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