बुधवार, 29 अप्रैल 2015

तेरे कारन

तेरे कारन मेरे साजन हम, क्यूँ किताबोँ से दूर हुए।
आशिक थे कई हम हैँ वो नहीँ, जो चाहत मेँ मशहूर हुए॥
आशिक की कब्रेँ खोदी हैँ, महबूब की मेहंदी पौँछी है।
जर्जर जमाने के जब भी, है अलग-अलग दस्तूर हुए॥
तेरे कारन ………….
भर दिए हैँ कई कोरे कागज़, कैसा है अजब ये पागलपन।
गुणगान मेँ तेरी चाहत के, हम गालिब और गफूर हुए॥
तेरे कारन ………….
रुकती-रुकती सी रातेँ हैँ, बहकी-बहकी सी बातेँ हैँ।
पत्थर पथरीले पथ पर हम, क्यूँ चलने को मजबूर हुए॥
तेरे कारन ………….
इक बात मेरी तो मानलो तुम, जीवनभर हाथ ये थाम लो तुम।
उन्हेँ जोड़ने की कोशिश तो कर, जो शीशे चकनाचूर हुए॥
तेरे कारन ………….
तेरा साथ सफर सुहाना है, तेरे बिन बेरंग बेगाना मैँ।
कुछ सोच तो मेरे बारे मेँ, क्यूँ अहं मेँ तुम मगरुर हुए॥
तेरे कारन ………….

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