बुधवार, 29 अप्रैल 2015

कोरा कागज़

मत भेज़ मुझे कोरा कागज़,
इस पर मैँ न जाने क्या लिख दूँ।
तेरी बेचैनी बढ जाएगी गर,
तुझसे है मोहब्बत हाँ लिख दूँ।
मेरे चारोँ ओर जो फैला है,
तुझ बिन बेरंग समां लिख दूँ।
तुम सोचोगी मुझे हुआ है क्या,
जो हाल-ए-दिल का बयाँ लिख दूँ।
प्यार मेँ तेरे काँटे जो,
दिन-रात सुबह और शां लिख दूँ।
तय किए तड़पते-तरसते जो,
वो ख्वाब-ए-कारवाँ लिख दूँ।
कुछ और तो तूने छोड़ा ना,
बाकी है बस ये जाँ लिख दूँ।
इस दिल मेँ तुमसे है जो अलग,
धूमिल होते वो निशां लिख दूँ।
जरा रोक तो लो मेरी ये कलम,
ना तेरा नाम-पता लिख दूँ।
वो झुकी नज़र लालिम चेहरा,
तेरी सारी शर्मो-हया लिख दूँ।
पाने को तुझको अ हमदम,
अर्ज़ी दरबार-ए-ख़ुदा लिख दूँ।
मत भेज़ मुझे कोरा कागज़,
इस पर मैँ न जाने क्या लिख दूँ।

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