ईमानदारी कहाँ बसी है ,
  किसी बिल में छुपी है,
  मिलती है, कुछ को,
  पर पैसे की चमक,
  में दबी पड़ी है,
  कुछ छोड़ आते है,
  गंगा की लहरों में,
  मस्जिद की सीढ़ियों पे,
  आवाज़ दब जाती है,
  मंदिर के घंटो में,
  मस्जिद की आज़ान में,
  खोजते है मुआल्वी पंडित,
  भगवान अल्लाह के
  मानने वालों में,
  नेता खोजते अपने,
  वोट देने वालों में,
  निकल आए उस बिल से,
  जब ये ईमानदारी,
  तो खोल के जी लेगी
  ईमानदारी |
शिवानी
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