खाकर बर्गर ,चाऊमिन, पिज़्ज़ा
  फिदरत दुनिया की बौराय रही
  ऊँची दुकानो भोजन करके
  पेट पर हाथ फिराय रही 
कभी समोसे में आलू
  कभी नूडल बीच घुसाय रही
  डीप फ्राई चौपाटी पर
  रेहड़ी पर लार टपकाय रही
भरकर हवा पानी में
  जोश मोको दिलाय रही
  कोल्ड्रिंक से डर भगाकर
  निडर मोहे  बनाय रही 
पेस्टी नान केक दीवानी
  मख्खन ओपे लगाय रही
  रबड़ी छाछ भूली चूल्हे को
  सब मिक्सी में घुमाय रही 
कोई पिचका है कोई फूला है
  जवानी भी और बूढ़ाए रही
  चटकारे ले बाली कलियाँ
  पैकेट में घुसती जाय रही 
बेकिंग सोढा हो गई दुनिया
  खुद ही उफनती जाय  रही
  बाँट चटनी सिलवटे पर
  मोरी माँ  खिलाय रही 

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें