बुधवार, 29 अप्रैल 2015

!! चले आओ !!

      कब तक सजाओगे सपने मिलन के !
      छोड़ ख्वाहिशो का दामन चले आओ !!

      कैसे रह पाओगे हमारी दुनिया छोड़कर !
      तोड़कर तन्हाई का दामन चले आओ !!

      जन्नत के सुकून से भरी मेरी आगोश !
      बहके कदमो से सही, तुम चले आओ !!

      डूब जाएंगे इन आँखों में सदा के लिए !
      बहाकर अश्को का समुन्द्र चले आओ !!

      कब तक जिओगे यू घुट-घुटकर जमाने में !
      लांघकर बाधा शर्म ओ हया की चले आओ !!
      !
      !
      !
      ( मूल रचना – डी. के निवातियाँ )

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