बज उठी समय की रण-भेरी
  अब रण कौशल की बारी है,
  हार मिले या जीत मिले
  कर्तव्य प्रथा ही प्यारी है।
  साहस किसमे है कितना
  किसमे कितना विश्वास भरा,
  इस महासमर मे उठती
  प्रश्नो की पावन चिंगारी है।
  प्रतिभाओं के सूर्य कई हैं
  कई सितारों के साथी,
  आगे बढ़ पाऊँगा कैसे
  जुगनुओं का मै बाराती ,
  अपने महिमा मंडन को
  बहुत किया है व्यर्थ प्रलाप,
  सार्थक करने सार्थकता को
  करना होगा "वार्तालाप" ।
  है “असमंजस” मे चित्त मेरा
  चिंता मे चित न हो जाऊँ ,
  “हल्ला बोलूँ” किस कौशल से
किस कौशल से सम्मुख आऊँ ।
  है “प्रस्तुति” परमार्थ की
  परमार्थ इसका पूर्ण है,
  शील साहस धैर्य से
  अब मन मेरा सम्पूर्ण है।
  साथ लिए टिम टिम जुगनू की
  मै आगे बढ़ता जाता हूँ,
  लौ निचोड़ अपनी सारी
  मै सूरज से टकराता हूँ।
  बुद्धि विवेक का अवलोकन हो
  या प्रश्नो का हो प्रहार,
  अति-विनीत हो सबका मै
  प्रत्युत्तर देता जाता हूँ।
  तन्मयता की ऐसी छवि पर
  सोच मे पड़ा विधाता है,
  मैंने लक्ष्य को साधा है
  या लक्ष्य ने मुझको साधा है।
  हार हो या जीत हो
  बस युद्ध करने का जुनून है,
  जब तक रहूँ मर्यादित रहूँ
  फिर बिखर जाऊँ शुकून है।
  है “अपूर्व” “शोभित” “अनंत”
  इस महासमर की कांति किरण,
  चहुंदिश चंचल चातुर्य लिए
  स्वच्छंद विचरता ख्याति हिरण।
  उस “बागेश्वर” की बाग के
  हम “पल्लव” हैं “प्रतीक” हैं,
  “अभिषेक” कर प्रकाश से
  जिसने दिया सादर शरण ॥
  ….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
स्मृतिया- यह कविता मेरे कालेज के एक वार्षिक techincal festival “Enigma-2008” से प्रेरित है जिसमे उस वर्ष विभिन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था जैसे-“वार्तालाप”,”असमंजस”,”प्रस्तुति”व”हल्ला बोल”।अपूर्व,शोभित,वागेश्वर,प्रतीक,अनंत व अभिषेक आदि इस वार्षिक प्रतियोगिता के आयोजक मण्डल के सदस्य थे। यह कविता मेरे सभी मित्रों एवं आयोजक मण्डल के सम्मानित सदस्यों को समर्पित है।
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