गुरुवार, 26 नवंबर 2015

नारी और विश्व की प्रगति और नर चेतना

नारी और विश्व की प्रगति और नर चेतना–संतोष गुलाटी

नर को मानना पड़ेगा
नारी दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी का रूप है
नारी की प्रगति के बिना
विश्व की प्रगति संभव नहीं
नारी बचपन से ही जागरूक है
सब कर्तव्यों को निभाती है
अपने अधिकारों की माँग करती है
वह कभी भी सोई नहीं
नर चेतना सोई रहती है
क्षत्राणी कभी भी सोई नहीं
विदेशी ताकत से लड़ती रही
पुरुष को चेतना जागरण का संदेश देती है
धुरी के बिना पहिया चल नहीं सकता
नारी की प्रगति के बगैर
कोई राष्ट्र प्रगति कर नहीं सकता
ज़रूरत है नर को नारी को जानने की
वैसे नर को सब पता है
लेकिन वह अनजान बनता है
नारी जब विशेष कुछ करती है
नर में हीनता का भाव जाग पड़ता है
नारी शिखर पर न पहुँच जाए
नर ने ऐसी सौगधं खाई है
उसकी प्रगति में रोड़े अटकाना
अपना शान समझता है
जब परिस्थिती बेकाबू हो जाय
वह तब अपनी लगाम
नारी के हाथ थमा देता है
शिव जब महिषासुर को न मार सके
उसको मारने के अधिकार दुर्गा को दे दिए
पापी का नाश किया
नारी के साथ काम करना
उसकी शान के ख़िलाफ है
क्योंकि वह अधिक शक्तिशाली है
पत्नि उससे अधिक कमाए
या अपने कार्य सुचारू ढंग से करे
वह सर्वदा टाँग अड़ाता है
नारी कठपुतली बन कर रहे तो ठीक
शेरनी बन जाए तो वह उसके विपरीत
बराबरी का अधिकार स्वीकार नहीं
नारी में क्या-क्या शक्तियाँ हैं
अभी तक उस से अनभिज्ञ बनता है
नर की चेतना जागृत करना आवश्यक है
जब भी नारी आवाज़ उठाती है
नर की रूह काँप जाती है
नारी की कोख़ उसको कमज़ोर बना देती है
हे जननी ! धातृ ! नर की चेतना को जगाओ
अपने अधिकारों के लिए युद्ध जारी रखो
विश्वास रखो एक दिन कामयाबी ज़रूर मिलेगी
नर को नारी के कर्तव्य बताने की ज़रूरत नहीं
एक बार नर नारी की ज़िंदगी जी के तो देखे
अपने मर्द होने का घमंड लुप्त हो जाएगा
नारी केवल भोग की वस्तु नहीं
वह अबला नहीं चंडी, सहनशीलता की प्रतिमा है
नारी का सदा सम्मान होना चाहिए।
नारी भी नर के बिना अधूरी है
संसार को चलाने के लिए
दोनो का साथ में चलना ज़रूरी है ।
नर की चेतना को जागृत करना ज़रूरी है ।।

संतोष गुलाटी

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